by Ashfaq Ahmad (Author) Book: God’s Existence Paperback: 172 pages Publisher: Gradias Publishing House Language: HINDI ISBN-13: 978-81-943451-2-1 Product Dimensions: 12.7 x 1.27 x 20.32 cm
दुनिया की ज्यादातर आबादी आस्था के आगे घुटने टेक देती है, क्योंकि उसका दबाव पैदा होते ही पड़ना शुरू हो जाता है… घर के सदस्यों से, स्कूल के सहपाठियों और टीचर्स से, मुहल्ले के दोस्तों और रिश्तेदारों से और वर्क प्लेस पर कलीग्स से… जब हर तरफ लोग उन्हीं इल्लॉजिकल आस्थाओं का गुणगान कर रहे हों तो खुद को उनसे बचाना नामुमकिन की हद तक मुश्किल होता है।
लेकिन मुझमें लेखन की विधा बचपन से ही विकसित होनी शुरू हो गयी थी और लेखक के लिये सबसे जरूरी चीज है कि वह सबकुछ जाने… जितना हो सके उतना जाने। तब तक मजहब के विषय में जितना भी जाना था वह बस अपने फिरके से सम्बंधित लिटरेचर से ही जाना था… लेकिन फिर जब ‘मानने’ की दुनिया से निकल कर ‘जानने’ के पथ पर चला तो पता चला कि हमारे ही धर्म के ही शिया पंथ ने जो लिटरेचर लिख रखा था वह पैगम्बर और चौथे खलीफा हजरत अली से सम्बंधित हिस्से को छोड़ कर बाकी लगभग सब एकदम उलट था।
कैसे अंदाजा लगाया जाये कि किसने ज्यादा सही लिखा है? तब यह चीज समझ में आई कि इतिहास में सबकुछ न सिर्फ अच्छा हो सकता है न सबकुछ बुरा और मजहबी लेखक, चाहे वे जिस पंथ के हों कभी उस इतिहास के साथ न्याय नहीं कर सकते, क्योंकि वे सिर्फ वही लिखेंगे जो महिमामंडन करने वाला हो, वे उन गुजर चुके महिपुरुषों की कमियों, नाकामियों और बुराइयों को भी कुटिलतापूर्वक जस्टिफाई ही करेंगे।
ऐसे में बेहतर है कि उन न्यूट्रल लोगों को पढ़ा जाये जिन्होंने उस इतिहास को बिना किसी पूर्वाग्रह के सबके लिखे को पढ़ कर और तमाम दूसरे साक्ष्यों को आधार बना कर शोध किया हो और तब लिखा हो कि सच होने की सबसे नजदीकी संभावना क्या हो सकती है… और वह सब पढ़ते ही सारा तिलस्म टूट गया, सारे ही धर्म रेत के महल की तरह भरभरा कर ढह गये और सारी हकीकत सामने आ गयी। मुझे थोड़ा सदमा लगा, थोड़ा अफसोस हुआ कि जैसे मेरा कुछ छीन लिया गया हो लेकिन धीरे-धीरे पढ़ते समझते अंदाजा तो पहले ही हो चुका था।
फिर जब वह सारी बातें खारिज हो गयीं जो इस दुनिया के धार्मिकों ने गढ़ रखी हैं तब नये सवालों ने घेर लिया कि फिर यह सब कैसे है… क्यों है? तो इस विषय में जो भी वैज्ञानिक चिंतन, शोध या संभावनायें थीं, उन पर नजर डाली और कई तरह की नयी संभावनायें समझ में आईं जिनमें इस प्लेनेट को, इस प्लेनेटरी सिस्टम को और यूनिवर्स को बांधा जा सकता था… अब जब यह संभावनायें समझ में आईं तो यह सवाल वापस सामने आ खड़ा हुआ कि यह सबकुछ सेल्फमेड है या किसी ने गढ़ा है? अगर किसी ने वाकई इसे गढ़ा है तो वैज्ञानिक नजरिये से उसकी किस-किस तरह की संभावनायें हो सकती हैं।
अगर आप आइन्स्टीन की पीढ़ी के साथ खड़े हो कर सोचते हैं तो इस पूरे सिस्टम में, जिसे सृष्टि कह सकते हैं— हर चीज़ फिक्स है, यानी हर चीज़ का एक फार्मूला तय है कि ऐसा है तो वैसा होगा और वैसा है तो ऐसा होगा… यानी सम्भावना या “हो सकता है” के लिये कोई जगह नहीं, लेकिन इस पीढ़ी की थ्योरी में कई अनसुलझे सवाल भी थे जिनके जवाब स्टिंग थ्योरी ने दिये, जो रिलेट करती है क्वांटम फिजिक्स से और क्वांटम फिजिक्स में संभावनाओं— या यूँ कहें कि “हो सकता है” के लिये पूरी गुंजाईश मौजूद है। तो अब अगर इस एंगल को ध्यान में रखते हुए ही हम चिंतन मनन करें तो इस पूरे सिस्टम को लेकर कई तरह की संभावनायें बनती हैं, जिन पर वैज्ञानिक वर्ल्ड में चर्चा होती रहती है… और हम भी उन्हीं संभावनाओं पर नज़र डालेंगे।